बिहार में 12 वर्षों के बाद महागठबंधन के आधार राष्ट्रीय जनता दल एवं कांग्रेस) दो विपरीत धुरी पर खड़े नजर आ रहे हैं। इसके कई कारण हो सकते हैं, लेकिन तात्कालिक कारण है कन्हैया कुमार का भारतीय कम्युनिस्ट पार्टी छोड़कर कांग्रेस का दामन थामना। बिहार में महागठबंधन की ड्राइविंग सीट पर बैठे आरजेडी को यह बुरा लगा है। तेजस्वी यादव के रास्ते में अड़चन दिखी। विस्फोट तो होना ही था। विधानसभा चुनाव में गठबंधन के तहत कांग्रेस को 243 में से 70 सीटें देकर बाद में कोसने वाले लालू प्रसाद ने उपचुनाव को मौके की तरह लिया। उसके हिस्से की सीट छीनकर हैसियत बताना जरूरी समझा। आरजेडी की रणनीति में वामदलों का भी मौन समर्थन माना जा रहा है। कन्हैया के स्टारडम से उम्मीद लगाने वाले वामदलों को कांग्रेस के रवैये से झटका लगा है। साथी दल को तोड़ने को महागठबंधन धर्म के खिलाफ भी माना गया। वामदल के एक बड़े नेता का कहना है कि गठबंधन के साथी दल ही अगर सहयोगी पार्टी के कार्यकर्ता पर डोरा डाले तो इसे ठीक कैसे कहा जा सकता है। ऐसे में कांग्रेस के कद को छोटा करने के आरजेडी की रणनीति पर वामदलों ने आपत्ति नहीं जताई, बल्कि चुप्पी लगा ली।
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